Tuesday, November 23, 2010

विरासत


बरगद बनूँ
कभी न खर्च करूँ नहाने में
एक बाल्टी से अधिक पानी
पुत्र से सिगरेट माँगकर पियूँ
हाफ पैंट पहनकर धम धम चलूँ
गोलियों को गलाकर पीतल
की कलछुल बनवा लूँ
कभी गाँजा पीकर मस्त भी हो लूँ
पत्नी की बात बरदाश्त करने का अकूत धीरज हो
ट्रेन में आराम ही न खोजूँ
बदनामी भी सह लूँ
सिर्फ़ यही नहीं
जब कभी गुस्सा आये
तो अपने पाँव पर भी
मार लूँ कुल्हाड़ी
यह क्या कि हर वक्त
नफा नुकसान ही सोचते रहो
जो भी मिल जाये
खा लूँ
न कहने लायक भी सुना सकूँ
दोस्तों को
गुदा मार्ग में फँसा हुआ गू
हाथ से निकालूँ और
मैल सा झाड़ दूँ
पेशाब जोर से लगने पर
बस के दरवाजे पर कर लूँ
चमड़ी फट जाये
तो मक्खियों को बैठ्ने दूँ
बाँट दूँ अपने आपको
नाती पोतों में
बच्चों की लीला का मजा लूँ
फ़न्ने खां को भी न पहचानूँ
मुसाफिर से चिलम भरवाऊँ

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