Monday, December 6, 2010

मोबाइल क्रांति


पहले ट्रांजिस्टर बिजली से चलता था तो एक जगह स्थिर रहता था । फिर बैट्री लग जाने से सचल होकर वह रेडियो बना । इसी तरह फ़ोन भी बैट्री लग जाने से मोबाइल हो गया है । मनुष्य की बुनियादी जरूरतों को पहले रोटी कपड़ा और मकान के रूप में परिभाषित किया जाता था । जबसे आदमी के लामकान होने की गति बढ़ी तबसे इसे रोटी कपड़ा और मोबाइल कर दिया गया । उदारीकरण से बेघर हुए आदमी की पहचान उसका मोबाइल नंबर है ।
मोबाइल की एक कंपनी का नाम आइडिया है । उसका नारा है- ऐन आइडिया कैन चेंज योर लाइफ़ । सही वैसे इसके उलटा है- योर चेंज्ड लाइफ़ नीड्स आइडिया । दूरसंचार के क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र ने कैसे निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया इसका सर्वोत्तम उदाहरण मोबाइल उद्योग है । सबसे सस्ती सेवा होने के बावजूद बी एस एन एल कनेक्शन देने विलंब करता है ताकि अन्य मोबाइल कंपनियों को आराम से फ़ैलने का मौका मिले । निजी उद्योग ने जिस तरह बेफ़िक्र होकर मनुष्य की निजी जिंदगी में दखल देना शुरू किया है उसका भी सर्वोत्तम उदाहरण यही क्षेत्र है ।
हुआ कुछ यूँ कि 2004 के लोकसभा चुनाव के वक्त एक दिन प्राइवेट नंबर से अटल जी ने बोलना शुरू किया ।तब लगता था कि भाजपा के लिये नियम कानून का कोई मतलब नहीं है इसलिये इस कंपनी ने भाजपा को मेरा नंबर क्यों दे दिया इस पर गुस्सा दिखाने की हिम्मत नहीं हुई । लेकिन फ़िर तो कंपनी को इंटरनेट साइट पर ई मेल पहचान बेचने वालों की तरह नंबर बेचने की आदत लग गई । कभी हच से फ़ोन आ रहा है तो कभी एयरटेल से । आश्चर्य न करियेगा अगर आपका नंबर अपने आप फ़्रेंड्शिप क्लब में चला जाए । अब सवाल यह उठा कि निजी जिंदगी में इस दखल के खिलाफ़ किसके यहाँ शिकायत दर्ज कराई जाए ।
कंपनी के मालिक तक पहुँचना असंभव है । वह तो सातवें आसमान पर बैठे खुदा की तरह अगम्य है । मेरी शिकायत सुनने के लिये हजार पंद्रह सौ रुपये महीने की तनख्वाह पर एक खूबसूरत आवाज बिठा दी गयी है । वह भी कंपनी के मालिक की तरह गारंटी लेती हुई बोली- हमारी कंपनी ऐसा काम कर ही नहीं सकती ।
सो यह था आइडिया जिसने हमारी जिंदगी को बदलकर रख दिया है । अब उसमें निजता बनाये रखना मेरे लिये असंभव हो गया है । कोई शिकायत होने पर सुनवाई होने की सुविधा भी छिन गई और फ़ोन पर कितना खर्च होगा इसके संबंध में किसी निर्णय में मेरा कोई दखल नहीं रहा ।

No comments:

Post a Comment