Wednesday, June 22, 2011

एक सपना

करोड़ों लोगों के जुलूस के पाँव तले धरती काँप रही है । उनके एक एक कदम पड़ते हैं और दुनिया हिल हिल जाती है । यह जुलूस यहाँ से वहाँ तक पूरी पृथ्वी को चारों तरह से लपेटे हुए है । इसमें शामिल हैं स्कर्ट और शर्ट पहने अंडे और सब्जी के पैकेट उठाए लोग, लंबे स्कर्ट पहने कंप्यूटर पर थिरकती उंगलियों का संगीत रचते लोग, सुनहरे, लाल अथवा काले; घुँघराले अथवा सीधे; चोटी किए हुए अथवा खुले, लंबे अथवा छोटे बाल लहराते हुए इस जुलूस की सादगी तो देखिए । घर, सड़क, ट्रेन, पुल हर कहीं इसका एक हिस्सा बिखरा है ।

खेतों में कछनी मारकर झुके झुके दिन भर टखनों से ऊपर पानी में धान रोपते, पीठ पर अपने बच्चे बाँधे, जरा सी उत्तेजना में भभक भभक उठते चेहरे, अनंत बिवाइयों भरे या फिर मखमली जूती में पाँव, ठीक कमर पर हाथ रखकर कोई स्त्री जब आत्मविश्वास से भरा चेहरा ऊपर उठाती है तो लगता है पूरी सृष्टि से जूझ लेने की ताकत बटोर रही हो ।

इस स्त्री की उंगलियों की छाप हर कहीं पड़ी हुई है । सभी चीजें उसकी मेहनत की गवाही देती हैं । अगरबत्ती से लेकर कपड़ों तक, फ़सलों से लेकर मकान तक सब कुछ बनाने के बाद जब वह सोती है तो कभी गौर से उसका चेहरा देखिए । मान्यताएँ, रूढ़ियाँ और मर्दानगी जब सब उसे परेशान करने के लिए चौबीसों घंटे तैयार रहते हैं तब भी निश्चिंतता का एक एक क्षण वह भरपूर जीती है । आपस में कभी उन्हें बात करते देखिए बच्चों सी उत्सुकता और नटखटपन; और उसी तरह दूसरे का दुख सुनने का अपार धीरज ।

वह एक भरपूर व्यक्तित्व है । उसे समझने के लिए हमारे उपादान क्या हैं ? उसकी जाँघें, स्तन, पीठ और आँखें हमें कितना सुख देते हैं । अगर निर्वस्त्र नहीं तो यह कि उसके वस्त्र, हाथ पाँव और चेहरे की चिकनाई हमारी आँखों को कितने सुंदर लगते हैं । लेकिन हम निजी जीवन में चाहे जितने घृणित हों सार्वजनिक जीवन में अत्यंत सभ्य होते हैं इसलिए हमने स्त्री मन को एक खास रहस्यमय चीज बना डाला है । इस मन के अनुसंधान के नाम पर उतरते जाइए गहराइयों में और उसे समूचे सामाजिक जीवन से अलग छोटी छोटी सामाजिक इकाइयों में दोयम दर्जे की भूमिका निभाने तक सीमित रखिए ।

सचमुच जिस दिन यह जुलूस शक्ल ले ले उस दिन सब कुछ बदल जाएगा । कोमलता और निर्माण की उस विराट सृष्टि की कल्पना भी अत्यंत दुष्कर है । सपनों के लिए भी मामूली संघर्ष नहीं करना पड़ता ।

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