Sunday, April 22, 2012

अकेले



भय आशंका और कशमकश
का एक महाकाव्य
मेरे इर्द गिर्द दुनिया लिख रही है
और मैं कमरे में
अकेला लेटा हुआ
एक गहरी चुनौती के सामने
असहाय खड़ा हूँ ।
सैकड़ों पन्ने लंबी कविता
मेरे सामने से फड़फड़ाकर
उड़ी जा रही है
और मैं उसके एक एक वाक्य
को पकड़ने के लिए व्याकुल हूँ
तब जबकि बुद्धि ने
मेरा साथ छोड़ दिया है
आजकल मेरे दिमाग
में घंटियाँ सी बजती रहती हैं
कि तने हुए तारों पर
उनके टूटने के भय के बावजूद
लगातार चोटें पड़ती रहती हैं
सचमुच जिंदगी के
सारे फ़ैसले अकेले ही करने पड़ते हैं
लेकिन कितना खतरनाक होता है
कोई फ़ैसला लेने के
पहले की कशमकश से गुजरना
और हर हमेशा उसके
बदल जाने की आशंका
का बने रहना
मैं नहीं कह सकता
मेरी कविताएँ जिंदगी की
उस छोर को छूतीं या नहीं
जहाँ तुम भी अकेले
बिलकुल अकेले
सभी तरह के फ़ैसले लेने के
लिए अभिशप्त हो
लेकिन संकट की इन
कठिन घड़ियों में मैंने तुमसे
सिर्फ़ विश्वास का हाथ माँगा था
और सच कहूँ तो तुम्हारी इच्छा के
बगैर भी
जब भी कभी पीड़ा से टूटकर
बिखर जाने को होता हूँ
केवल और केवल
तुम्हारे ही हाथ हैं
जो सहारा देने को तैयार
मिलते हैं
मैं बहुत छोटा आदमजात हूँ
तुम्हारे सामने जब भी
आता हूँ
बचपन से आज तक जो भी
मैंने कमाया है पाया है
उस सबका
लेखा जोखा करने के लिए
मजबूर कर दिया जाता हूँ
हम सभी छोटी फसल के
छोटे पौधे हैं
लेकिन जब भी अकेला मैं
किसी की जरूरत महसूस करता हूँ
किसी न किसी रूप में
उसे अपने करीब जरूर
पाता हूँ

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