Tuesday, May 1, 2012

अन्याय और आप


                        
अन्याय के बारे में आप जानते हैं या नहीं मैं नहीं जानता किंतु मैं तो नहीं ही जानता । मैं तो मानव मन के अंतर में विचरने वाला प्राणी ठहरा जहाँ शांति का साम्राज्य है न ईर्ष्या है न द्वेष । लिहाजा जबअंकुरके संपादक महोदय ने नोटिस लगा दी तो मैं भी अन्याय खोजने निकल पड़ा । घर के सामने से ही रिक्शा पकड़ा । रिक्शावाला घर से भागते हुए जो कमीज पाजामा पहनकर चला था वह अब फट रहा था । कम ही उमर का था ज्यादा का दिखाई दे रहा था । मेरी नजर अन्याय की खोज में दूर दूर तक देख रही थी कि मेरे अन्वेषण कार्य में बाधा पड़ी । शहर का रास्ता जाम हो गया था और कुछ वर्दीधारी पुलिस के सिपाही रास्ता साफ करने की कोशिश कर रहे थे । मैं चिंतातुर हो देखने लगा कि आखिर रास्ता जाम क्यों है । तब तक पुलिस के डंडे की कृपा से यातायात कुछ चालू हुआ । असल में ये रिक्शे वाले ही पैसा कमाने के चक्कर में इधर उधर से तेज चलाकर सड़क जाम किए रहते हैं । कृपालु पुलिस ने एक डंडा जो रिक्शे वाले को लगाया तो वह तेजी से बढ़ चला । इन पर भी जब तक कुछ डंडे न पड़ें सीधे नहीं रहते हैं वर्ना पहले ही क्यों नहीं बढ़ चला होता । खैर कुछ आगे चलने पर पता चला कि कोई मंत्री महोदय आए हुए हैं । उनकी सभा में काफी भीड़ थी इसीलिए समूचा रास्ता रुका पड़ा था ।
मैं रिक्शे से उतर पड़ा । शायद ये नेताजी मेरी कुछ मदद करें यह सोच उनकी सभा में जाकर बैठ गया । नेताजी संभवतः अन्याय पर ही बोल रहे थे तभी तो इतना जोशो खरोश उनकी आवाज में था । दसियों लाउडस्पीकरों के शोर में जो कुछ मैं सुन पाया उसे आपकी ज्ञानवृद्धि के लिए उद्धृत करना यहाँ उचित समझता हूँ ।आज देश में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं । हमारे पुराने ॠषियों ने राज्य को एक शरीर कहा था । शरीर का कोई भी अंग अगर अलग हो जाय तो पूरा शरीर बेकार हो जाएगा । यह साफ तौर पर देश की जनता के साथ अन्याय है ।’ क्या सुंदर व्याख्या की नेताजी ने एकता की । अब बताइए कल एक भाई साहब मुझे समझा रहे थे इस देश की प्रत्येक राष्ट्रीयता को देश से अलग हो जाने का अधिकार है । क्या लाजवाब तर्क नेताजी ने दिया है । वे सज्जन अगर यहाँ रहते तो अभी मैं पूछता । खैर नेताजी बोल रहे थे ‘अब बताइए पिछले 10 जनवरी को कुछ छात्रों ने लखनऊ में जी पी ओ चौराहा पार करना चाहा । सरकार तो भाई कछुए की तरह सुरक्षा के कड़े खोल में रहती है । उसे कोई हटाना चाहे तो यह आपके द्वारा चुनी हुई सरकार की सुरक्षा का सवाल है । हमारी पुलिस ने अवश्य कुछ लाठियाँ सड़क पर पटकीं । इसके विरोध में उन्होंने 26 जनवरी को काला दिवस मनाया । यह एक राष्ट्र विरोधी कार्य है । हम छात्र भाइयों से अपील करेंगे कि वे राजनीति से अलग होकर राष्ट्र के रचनात्मक कार्यों में लगें ।’
अभी कल एक साहब मुझे समझा रहे थे कि पुलिस ने उनके ऊपर घोड़े चढ़ा दिए । यह संविधान का उल्लंघन है अतः गणतंत्र दिवस के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए हम काला दिवस मना रहे हैं । अरे साहब, गांधी फ़िल्म में सर एटनबरो ने दिखला ही दिया है कि घोड़े आदमी पर नहीं चढ़ते आदमी घोड़े पर चढ़ते हैं । अच्छा अब उनसे फिर मिलने पर बताऊँगा ।
नेताजी का भाषण जारी था ‘जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है यह तो समूचे विश्व की समस्या है । कोई अकेले हमारे देश की बात तो है नहीं । देश पिछले 36 सालों से लगातार प्रगति कर रहा है । आज उसके प्रगति की रफ़्तार इतनी तेज है कि मँहगाई का बढ़ना तय है । जो लोग मँहगाई घटाने की माँग कर रहे हैं वे देश की प्रगति के साथ अन्याय कर रहे हैं ।’
अब तक मुझे यकीन हो गया था कि मेरा लेख जरूर पूरा हो जाएगा और नेताजी की व्याख्याएँ उसे सर्वोत्कृष्ट बना दें तो कोई अचरज नहीं । बहरहाल आज जो अमृत नेताजी ने मेरे कानों में उड़ेला उससे आत्मा तक को तुष्टि प्राप्त हो गई । एक ही दिक्कत पैदा हुई । अपने भाषण के अंत में उन्होंने पाकिस्तान की ओर से होने वाले आक्रमण की संभावना को देखते हुए लोगों से आपसी अंतर्विरोध भुलाकर देश को मजबूत बनाने की अपील की । युद्ध की चर्चा ने समूची सभा में सकता पैदा कर दिया । फिर भी मैं अपने भय पर विजय पा उनके सहयोग से कृतकृत्य उन्हें विदा करने चला । नेताजी कार में बैठे । सबको एक ही बार हाथ जोड़ा और कार आगे बढ़ चली ।
अरे रे ओफ़ ओह और आ ही गए । कैसे होते हैं ये माँ बाप जो बच्चों को सड़क पर घूमने के लिए छोड़ देते हैं । एक बच्चा कार के पहिए के नीचे आ गया और वह दृश्य मुझसे न देखा गया । मैं वापस लौटने लगा लेकिन वापस कहाँ ? भीड़ तो कार की ओर भाग रही थी । मैं भी मजबूरन भीड़ में फँस गया । देखता क्या हूँ कि लोग मंत्रीजी और उनकी कार पर गुस्सा उतार रहे हैं । उन्हीं लोगों में वह मेरा रिक्शावाला भी है । मैंने सोचा रहा होगा कोई भागा हुआ उग्रवादी । पर क्या ये समूची भीड़ उग्रवादी है ?
मैंने बगल के एक सज्जन को कहते हुए सुना- साले लोग भाषण देते हैं अन्याय पर । यहाँ कौन अन्याय कर रहा है ? सच मानिए मेरी तो सारी मान्यताओं का आधार ही उखड़ गया । अन्याय की परिभाषाएँ उलट गईं । अब मेरे उस लेख का क्या होगा जिससे मैं बतला सकता कि आपके साथ कहाँ और कैसे अन्याय हो रहा है !              

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