Sunday, November 23, 2014

नए अपराधी कबीलों का जन्म

                     
आज जो कुछ देखा उसने मुझे सुन्न कर दिया । असम विश्वविद्यालय, सिलचर में है । पूरे पूर्वोत्तर भारत में सिलचर अकेली ऐसी जगह मिली जहां भिक्षुक टहलते हुए मिल जाते हैं । पैसे, कपड़े आदि आपके यहां छोटा मोटा काम करनेवाला कोई भी निर्लज्जतापूर्वक मांग सकता है । अगर किसी ने उधार लिया तो वापस मिलने की आशा न करना ही हितकर होता है । इसका कारण बहुत कुछ शरणार्थी जीवन की विवशता और चाय कर्मियों की बढ़ती दरिद्रता में खोजा जा सकता है । लेकिन आज जो कुछ दिखाई पड़ा वह इससे पूरी तरह अलग था ।
दरअसल हुआ कुछ यूं कि इंटरनेट और कंप्यूटर को शिक्षण से जोड़ने की जुनूनी ख्वाहिश के चलते इस विश्वविद्यालय पर विद्यार्थियों और अध्यापकों को कंप्यूटर उपलब्ध कराने का दबाव था । छात्रावास में इंटरनेट उपलब्ध कराने का ठेका एच सी एल नामक कंपनी को दिया गया । कंपनी ने यह काम रोबोटिक्स नामक एक और कंपनी को सौंपा । रोबोटिक्स में पांच हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर काम करनेवाले नौजवानों ने यह सुविधा छात्रावास के कामन रूम में बिठा दी । सर्वर, इंटरनेट से जोड़नेवाले प्वाइंट, दस कंप्यूटरों को जीवित रखने योग्य यू पी एस, 6 बैटरियां- सब कुछ उसी कामन रूम में । छात्रों के पास लैपटाप थे, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने दस बी कार्ड दिए और छात्र ज्ञान के विश्व भांडार से लिंकित होने लगे । कुल चार-पांच दिनों तक यह खेल चला । फिर इंटरनेट की सुविधा अनुपलब्ध हो गई । छात्रों को इस सुविधा के बारे में बताते हुए अध्यापक ने कहा था कि अगर वे पोर्नोग्राफिक साइटें देखेंगे तो यह सुविधा वापस ले ली जाएगी । सो छात्रों ने मान लिया कि उनकी गलती के कारण ही ऐसा हुआ होगा ।
खेल तो कुछ और ही चल रहा था । रहस्य का उद्घाटन तब हुआ जब एक माह बाद अचानक सुबह यू पी एस गायब पाया गया । सफाई कर्मचारी ने उसे सीढ़ियों के पीछे बिजली वितरित करनेवाले लोहे के आलमारीनुमा बक्सों के पीछे छिपा पाया । प्रशासन को खबर हुई । सारा प्रशासन छात्रावास में । पता चला कि सर्वर जिस फ़्रिजनुमा आलमारी में रखा था उसका सामने का दरवाजा बंद होने के बावजूद भीतर से सर्वर गायब है । कीमत लगभग 15 लाख रुपए । कालाबाजार में इसे खरीदने पर लगभग 10 लाख में मिलेगा । बेचनेवाले को 6 लाख तक मिलने की संभावना है । ये सब बातें सूचना प्रौद्योगिकी के अध्यापक सुदीप्तो सरकार ने बताईं । यह भी बताया कि इस यंत्र के लिए कालाबाजार भी कलकत्ते से पहले शायद ही मिले ।
याद आया पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक कादिर ने परमाणु तकनीक का अंतर्राष्ट्रीय कालाबाजार खोल रखा था । अभी कुछ दिनों पहले अमेरिका ने खुद ही छोड़ी गई जासूसी सेटेलाइट को आसमान में नष्ट किया था जिसके बारे में उसे छोड़कर और किसी को खबर नहीं थी । क्या हो रहा है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि तकनीकी उफान का यह नया दौर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महज विशाल कालाबाजारी पैदा करने के लिए आया हो । और तीसरी दुनिया के लोगों को नए अपराधी कबीलों में बदला जा रहा हो!
अपराध और चोरी का यह नया वातावरण पैदा हुआ और इसमें कुलीगिरी करनेवाले तकनीकी नौजवानों से लेकर बड़े बड़े लोग शामिल हैं । जब प्रशासन के अधिकारी छात्रावास में भीड़ लगाए हुए थे तो हर कोई हास्यास्पद ढंग से शरलाक होम्स की भूमिका में था । कोई सूंघनेवाला कुत्ता खोज रहा था तो कोई उंगलियों की छाप पढ़नेवाला विशेषज्ञ । कोई चोरी की तारीख निश्चित करने की जुगत लगा रहा था तो कोई धमकाने की कला का प्रदर्शन कर रहा था । एक सज्जन, जिन्हें सी बी आई जांच से पूर्व कुलपति ने दो लाख रुपए लेकर बचाया था, मौका मिलते ही छात्रावास के एक कर्मचारी को थप्पड़ लगा बैठे ।
विश्वविद्यालय के कुछेक अधिकारियों को छोड़कर अधिकांश का कोई कार्यालय नहीं है इसलिए सभी नोटशीट के पन्नों पर ही गुणा-भाग कर रहे थे । प्राक्टर ने मुझे तीन रजिस्टर मंगाकर छात्रावास के तीनों ब्लाक कैप्टनों को देने की सलाह दे दी जिन पर शाम साढ़े सात बजे छात्रों की हाजिरी ली जानी थी । रजिस्ट्रार छात्रावास को जेल बना देने की धमकी दे रहे थे और कुत्ता न मिलने की स्थिति में स्वयं कोई न कोई चीज सूंघ रहे थे । कुलपति और प्रति कुलपति स्थितिप्रज्ञ अवस्था में बैठे थे । कुलपति कवि हैं इसलिए चोरों के विश्वविद्यालय का नेतृत्व करने पर पछता रहे थे । प्रति कुलपति नागालैंड विश्वविद्यालय से भ्रष्टाचार के आरोप में निकाले जा चुके थे और दो दिन पहले ही मुझे पेड़ लगाने में छात्रों का सहयोग लेने की सलाह देकर गए थे । छात्र सभी भाग्य विधाताओं को अपने बीच पाकर किंकर्तव्यविमूढ़ थे और पेयजल की सुविधा तथा अन्य दीर्घकालीन मांगों को भूल गए थे ।
यहां से चोरी मेरे लिए नैतिक और कानूनी विचार का मुद्दा हो जाती है । सिर्फ़ निजी संपत्ति की पवित्रता की धारणा के कारण चोरी नैतिक और कानूनी रूप से दंडनीय कृत्य हो जाती है । सहस्राब्दियों पहले मानव सभ्यता में यह दरार पड़ी । तभी से संपत्ति की रक्षा के लिए न जाने कितने कवच बनाए गए । ऐसा नहीं कि यह सब निरपेक्ष रूप से होता हो । बड़े चोरों का कोई भी अपराध माफ है । उन्हें किसी नैतिक संकट से नहीं गुजरना होता । राज्य और समाज की सभी संस्थाओं में यह भेदभाव देखा जा सकता है । सामान्य लोगों को ही समाज में लज्जा भी उठानी पड़ती है । बड़े चोरों के सामाजिक घेरे से तो उन्हें सुरक्षा और प्रोत्साहन ही मिलता है । मेरे जानते तो ऐसा भी हुआ है कि चोरी को सामान्य लोग इस कदर पाप मानते हैं कि चोरी करने के बाद के नैतिक संकट से बचाने के लिए दिमाग उसकी स्मृति को पूरी तरह मिटा डालता है ।       

4/3/2008 

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