Wednesday, April 20, 2016

जन संस्कृति पर मंडराते खतरे को पहचान चुनौती का मुकाबला करें


(गोरख पांडे का यह मूल्यांकनपरक लेख नवभारत टाइम्स, लखनऊ, 26 जनवरी 1990 को सर्जना नामक परिशिष्ट में प्रकाशित है)
जन संस्कृति की वास्तविक दुनिया में हमने अनेक काम पूरे किए और कुछ पूरे हो सके इस दौरान हम लोगों के सामने कुछ ठोस अनुभव और वैचारिक-सांगठनिक मामलों से जुड़ी प्रवृत्तियां और समस्याएं आईं विचारधारात्मक मसले को ही पहले रखें तो पाएंगे कि हमें जन संस्कृति की विचारधारा को अपने सदस्यों और संगठन से बाहर के लोगों तक जितनी व्यापकता के साथ पहुंचाना था, पहुंचा सके
हममें अभी तक जन संस्कृति की विचारधारा की व्यापकता का पूरा अहसास नहीं रहा है हमारे बीच अब भी पुराने ढंग से सोचने का रुझान बना हुआ है जो कहीं-कहीं संस्कृति को राजनीति का स्थानापन्न मानने और ऐसा करने वालों को एकदम गलत मान लेने जैसे रुख में जाहिर होता है हमारे बीच एक रुझान यह भी है कि चूंकि मंच राजनीतिक संगठन का अंग नहीं है इसलिए इसे हर राजनीतिक संगठन से हमेशा दूर रहना चाहिए यानी, हमारे बीच संस्कृति को राजनीति का स्थानापन्न या अनुवाद बनाने तथा संस्कृति को राजनीति से दूर करने के दो अतिवादी रुझान मौजूद हैं
इस बीच शासक वर्ग ने संस्कृति के क्षेत्र में अपने को बड़े पैमाने पर पुनर्गठित करने का काम शुरू किया है इस सिलसिले में उसने तमाम सांस्कृतिक केंद्र तो खोले ही, एक खास तरह के विचारधारात्मक रुझान को भी ठोस रूप देने का काम किया यह रुझान है पुनरुत्थान का जो अपने मौजूदा रूप में सांप्रदायिक विचार और भावना के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ गया है सांप्रदायिक भावना और विचार को प्रचारतंत्र अपना प्रमुख पहलू बनाता जा रहा है और एक धर्म निरपेक्ष वैज्ञानिक जन संस्कृति के विकास में भारी बाधा के रूप में सक्रिय है शासक वर्ग के इस विचारधारात्मक रुझान ने पिछले एक साल में और उग्र रूप धारण किया है जिसका मुकाबला करना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है
सांगठनिक स्तर पर तीन राज्यों की इकाइयों का निर्माण हमारी बड़ी उपलब्धि रही है
हमारी राज्य इकाइयों ने लोक कला को जनवादी रूप देने वाले तमाम कलाकारों को अपने साथ आने के लिए प्रेरित किया है, उर्दू के साहित्यकारों में अपने प्रति झुकाव पैदा करने में सफलता पाई है और अनेक नई सांस्कृतिक शक्तियों को अपने साथ ले लिया है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि हम इन राज्यों में काम को और सघन करने, अन्य राज्यों में मंच का विस्तार करने में बहुत सफल नहीं हो सके हैं संगठन में कुछ स्तरों पर हमें ऐसी प्रवृत्तियां दिखलाई पड़ी हैं जो हमारे नेतृत्वकारी साथियों को परस्पर मिलकर काम करने में अड़चन डालती हैं और सामूहिकता के समानांतर व्यक्तिगत सोच को आगे बढ़ाने की ओर ले जाती हैं हमारे बीच अपने साथियों के प्रति हिकारत का भाव रखने, दूसरों के कामों का उचित मूल्यांकन कर पाने तथा यहां तक कि एक दूसरे से झगड़ा कर लेने की प्रवृत्तियां दिखलाई पड़ी हैं हमें संघर्ष की अपनी क्षमता का उपयोग सामूहिक रूप से जन विरोधी शक्तियों के खिलाफ करना चाहिए और परस्पर सामूहिक निर्णय का भाव विकसित करना चाहिए जनता की जनवादी संस्कृति का निर्माण एक बड़ा काम है जो हमसे हर समय खुद जनवादी रुख अपनाने और जनवाद पर अमल करने की मांग करता है

हमारे बीच सांगठनिक स्तर पर भी संकीर्णता का रुख दिखाई पड़ा है हम ज्यादा से ज्यादा संस्कृतिकर्मियों को अपने साथ लाने के उद्देश्य पर हमेशा नजर नहीं रख पाते और दो एक उदाहरणों के आधार पर लोगों को अपने से अलग या दूर रखने का निर्णय ले लेते हैं जाहिर है कि यह प्रवृत्ति विचारधारात्मक स्तर पर मौजूद संकीर्णता से जुड़ी हुई है और हम इससे जितना जल्दी मुक्त हो, उतना ही अच्छा होगा    

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