Monday, December 12, 2016

इंटरनेशनल की सदस्यता और संरचना

              
जीवनकाल और बाद के दशकों में भी इंटरनेशनल का चित्रण विशाल और आर्थिक तौर पर मजबूत संगठन के रूप में किया जाता रहा । चाहे अपूर्ण जानकारी के चलते हो या इसके कुछ नेताओं के असलियत को बढ़ा चढ़ाकर बताने के कारण या विरोधियों द्वारा निर्मम दमन का बहाना खोजने की वजह से हो इंटरनेशनल की सदस्यता का हमेशा विस्फारित अनुमान किया गया । जून 1870 में इसके कुछ फ़्रांसिसी नेताओं पर अभियोग लगाने वाले सरकारी वकील ने कहा कि यूरोप में इस संगठन के 8 लाख से अधिक सदस्य हैं; एक साल बाद पेरिस कम्यून की पराजय के बाद टाइम्स ने इसे कुल 25 लाख बताया और अनुदारपंथियों में इसका अध्ययन करने वाला मुख्य मनुष्य आस्कर तेस्तुत (1840-अज्ञात) इसके 50 लाख से अधिक होने का अनुमान लगाता है ।
असल में सदस्य संख्या इससे काफी कम थी । सही अनुमान लगाना हमेशा कठिन रहा और यह बात इसके नेताओं तथा इसका निकट से अध्ययन करने वालों के लिए भी उतना ही सच है । लेकिन शोध की मौजूदा स्थिति में अंदाजा लगाया जाता है कि 1871-72 में इसके उठान के दिनों में यह संख्या डेढ़ लाख से कुछ अधिक थी: ब्रिटेन में पचास हजार, फ़्रांस और बेल्जियम में मिलाकर तीस हजार से ऊपर, स्विट्ज़रलैंड में छह हजार, स्पेन में लगभग तीस हजार, इटली में लगभग पचीस हजार, जर्मनी में दस हजार से ऊपर (लेकिन ज्यादातर सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी के सदस्य), इसके अलावा अन्य यूरोपीय देशों में कुछेक हजार तथा अमेरिका में चार हजार ।     
उन दिनों इंग्लैंड की ट्रेड यूनियनों और जेनरल एसोसिएशन आफ़ जर्मन वर्कर्स को छोड़कर प्रभावी मजदूर वर्ग संगठनों का अभाव था, ऐसी स्थिति में यह संख्या निश्चित रूप से काफी थी । इस बात को भी दिमाग में रखना होगा कि अपने समूचे जीवनकाल में इंटरनेशनल को कानूनी संगठन की मान्यता केवल ब्रिटेन, स्विट्ज़रलैंड, बेल्जियम और अमेरिका में मिली थी । अन्य देशों जहां इसकी मौजूदगी ठोस थी (फ़्रांस, स्पेन, इटली) वहां अनेक सालों तक यह कानूनी हाशिए पर रही और इसके सदस्यों को उत्पीड़न झेलना पड़ता था । जर्मन संघ के 39 राज्यों में इंटरनेशनल में शिरकत का मतलब कानून तोड़ना होता था और आस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य में कुछ सदस्यों को गोपनीय तरीके से काम करने को मजबूर होना पड़ा । बहरहाल इंटरनेशनल में अपने घटकों को अखंड संपूर्ण में एक कर लेने की उल्लेखनीय क्षमता थी । अपने जन्म के एकाध साल बाद ही सैकड़ों मजदूर सभाओं को संघबद्ध करने में सफलता पाई; 1868 के खात्मे के बाद मिखाइल बाकुनिन (1814-76) के अनुयायियों के प्रचार के चलते स्पेन में अन्य सभाएं जोड़ी गईं और पेरिस कम्यून के बाद इटली, हालैंड, डेनमार्क और पुर्तगाल में इसके प्रभाग पैदा हो गए । बेशक इंटरनेशनल का विकास असमान रहा: कुछ देशों में इसमें वृद्धि हुई जबकि कुछ अन्य देशों में स्थिर या दमन के चलते पीछे हटा । फिर भी जो अल्पकाल के लिए भी इंटरनेशनल में शामिल हुए उनमें जुड़ाव का मजबूत अहसास बना रहा । जिन संघर्षों में उन्होंने भाग लिया था जब वे समाप्त हो गए और विपत्ति तथा निजी मुश्किलात के चलते उन्हें दूरी बनानी पड़ी तो भी वर्गीय एकजुटता के बंधन उन्होंने बनाए रखे और जिस संगठन ने जरूरत के वक्त उनका साथ दिया था उसके नाम पर रैली के लिए आवाहन होने, पोस्टर पर लिखे शब्दों या संघर्षों का लाल झंडा फहराने के समय जो कर सकते थे करते रहे ।
बहरहाल सारे कामगारों का बहुत छोटा हिस्सा ही इंटरनेशनल का सदस्य था । पेरिस में उनकी तादाद कभी दस हजार से अधिक नहीं हुई और रोम, वियेना या बर्लिन जैसी अन्य राजधानियों में तो वे उंगली पर गिने जा सकते थे । एक और पहलू इंटरनेशनल में शामिल मजदूरों की प्रकृति से जुड़ा हुआ है: इसे मजूरी श्रमिकों का संगठन होना था लेकिन असल में ऐसे बहुत कम श्रमिक इसमें शामिल हुए; मुख्य आमद इंग्लैंड के निर्माण मजदूरों, बेल्जियम के टेक्सटाइल मजदूरों और फ़्रांस तथा स्विट्ज़रलैंड में भांति भांति के कारीगरों की हुई थी ।
ब्रिटेन में इस्पात मजदूरों को छोड़कर औद्योगिक सर्वहारा के बीच इंटरनेशन की मौजूदगी हमेशा ही छिटपुट रही । किसी भी देश में औद्योगिक सर्वहारा बहुसंख्यक नहीं हो सका, खासकर दक्षिणी यूरोप में संगठन के विस्तार के बाद तो कम से कम ऐसा ही था । दूसरी बड़ी सीमा यह थी कि पहली कांग्रेस की तैयारी के समय इस दिशा में कोशिश करने के बावजूद अकुशल मजदूरों को आकर्षित करने में संगठन नाकामयाब रहा था । अस्थायी आम परिषद के प्रतिनिधियों के लिए जारी निर्देशों में विभिन्न प्रश्न के तहत कहा गया:
अपने मूल उद्देश्यों के अलावे ट्रेड यूनियनों को अब मजदूर वर्ग की संपूर्ण मुक्ति के व्यापक हित में संगठक केंद्र के बतौर सचेत रूप से काम करना सीखना होगा । इस दिशा में प्रवृत्त प्रत्येक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन की उन्हें मदद करनी होगी । अपने आपको समूचे मजदूर वर्ग का प्रतिनिधि और हिमायती मानकर उसी तरह से काम करते हुए उन्हें अपनी कतारों में समाज-बाह्य मनुष्यों को शामिल करने से नहीं चूकना चाहिए । असाधारण परिस्थितियों ने जिन्हें शक्तिहीन बना दिया है, मसलन खेतिहर मजदूर सबसे कम पगार वाले ऐसे कामगारों के हितों का उन्हें ध्यान रखना होगा । उन्हें व्यापक जगत को समझाना होगा कि उनकी कोशिशें संकीर्ण और स्वार्थ से चालित होने के बदले लाखों पददलित जनगण की मुक्ति की दिशा में लक्षित हैं ।
बहरहाल ब्रिटेन में भी इंटरनेशनल में अकुशल मजदूर नहीं शामिल हुए, इसका अपवाद खनिक थे । सदस्यों की भारी बहुसंख्या दर्जी, बुनकर, जूता गांठने वाले और बढ़ई थे यानी मजदूर वर्ग के वे हिस्से जो उस समय सर्वाधिक संगठित और सबसे अधिक वर्ग सचेत थे । अंतिम बात कि इंटरनेशनल रोजगारशुदा मजदूरों का संगठन रहा; बेरोजगार इसमें कभी शामिल न हो सके । इसके नेताओं की उत्पत्ति में यह बात दिखाई पड़ती है क्योंकि लगभग वे सभी या तो कारीगर थे या बुद्धिजीवी ।
इसी तरह इंटरनेशनल के संसाधन भी जटिल थे । कहा जाता था कि इसके पास अकूत संपदा है लेकिन सच्चाई थी कि इसकी आय हमेशा अनिश्चित रही । व्यक्तियों की सदस्यता की फ़ीस एक शिलिंग थी जबकि ट्रेड यूनियनों से अपेक्षा थी कि वे अपने प्रत्येक सदस्य की ओर से तीन पेन्स का चंदा देंगी । बहरहाल अनेक देशों में व्यक्ति सदस्य बिरले ही थे और ब्रिटेन में ट्रेड यूनियनों का योगदान इतना डांवाडोल स्थिति में और बार बार घटाना पड़ता था कि साधारण परिषद को इस तथ्य को स्वीकार करके कहना पड़ा कि उनके लिए जितना संभव हो उतना चुका दें । जो चंदा एकत्र होता वह कभी बीसेक पाउंड सालाना से अधिक न हो सका और उससे महासचिव का चार शिलिंग साप्ताहिक मेहनताना तथा कार्यालय का किराया ही निकलना मुश्किल होता था । कार्यालय का किराया बाकी रह जाने के चलते खाली करने की धमकी बार बार संगठन को झेलनी होती थी ।
इंटरनेशनल के एक प्रमुख राजनीतिक-सांगठनिक दस्तावेज में मार्क्स ने इसका कार्यभार कुछ इस तरह बताया: “इंटरनेशनल वर्किंग मेन’स एसोसिएशन का काम मजदूर वर्ग के स्वत:स्फूर्त आंदोलनों का संयोजन और सामान्यीकरण है, निर्देश देना या किसी भी सिद्धांत को थोपना नही ।”

अलग अलग संघों और स्थानीय संभागों को प्रदत्त भरपूर स्वायत्तता के बावजूद इंटरनेशनल ने हमेशा ही राजनीतिक नेतृत्व का अधिकार बरकरार रखा । इसकी आम परिषद विभिन्न प्रवृत्तियों के एकताकारी संश्लेषक निकाय के रूप में काम करती थी और समूचे संगठन के लिए निर्देश जारी करती थी । अक्टूबर 1864 से अगस्त 1872 तक इसकी बैठकें काफी नियमित रहीं, 385 बार उसकी बैठक हुई । पाइप और सिगार के धुएं से भरे कमरे में आम परिषद के सदस्य मंगलवार की शाम को तमाम किस्म के मुद्दों पर बहस करते । मसलन काम के हालात, नई मशीनरी के असर, हड़तालों का समर्थन, ट्रेड यूनियनों की भूमिका और उनका महत्व, आयरलैंड का सवाल, विदेश नीति के तमाम मुद्दे, और भविष्य का समाज बनाने का तरीका । आम परिषद ही इंटरनेशनल के दस्तावेज तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी:  ये थे-तात्कालिक उद्देश्य से जारी परिपत्र, चिट्ठी और प्रस्ताव; विशेष परिस्थिति के लिए खास घोषणापत्र, वक्तव्य और अपीलें ।

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